संजय गुप्ता/बलरामपुर_शंकरगढ़@ बलरामपुर ज़िले का शंकरगढ़ विकासखंड… यहां एक ऐसा विद्यालय है, जिसने कभी न जाने कितने अफसर, शिक्षक और नेता तैयार किए, लेकिन आज खुद अपने अस्तित्व पर आंसू बहा रहा है.. हम बात कर रहे हैं बलरामपुर जिले के शासकीय बालक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बचवार की.. जो साल 1983 में पक्के भवन के रूप में खड़ा हुआ था और आज 43 साल बाद देखरेख के अभाव में जर्जर हालत में मौत को दावत दे रहा है.. माना की भवन पुराना हो चुका है फिर भी इसमें क्लास लगाए जारहे है और मानो किसी बड़े हादसों का इंतजार कर रहें हों..??

भवन से ज्यादा खतरनाक हालात
इस विद्यालय की छतें जगह-जगह से टपक रही हैं, दीवारों में चौड़ी दरारें पड़ चुकी हैं, दरवाज़े-खिड़कियां लगभग टूट चुके हैं.. बरसात में हालात और बदतर हो जाते हैं, हर कक्षा में पानी रिसता है.. कई बार तो छत का प्लास्टर बच्चों के ऊपर गिर चुका है, जिससे वे घायल भी हुए.. शिक्षक और विद्यार्थी रोज़ मौत के साए में पढ़ाई करने को मजबूर हैं..
शिक्षा की जननी बनी खतरे की गवाही
यही वह विद्यालय है, जहां से पढ़कर कई छात्र अधिकारी और नेता बने। इसी स्कूल के शिक्षक रहे डॉ. डी.एन. मिश्रा आज ज़िले के शिक्षा अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं.. मगर विडंबना यह है कि जिस विद्यालय ने उनके जैसे अफसर बनाए, वही आज उपेक्षा का शिकार है..

नेताओं और अधिकारियों की बेरुखी
ग्रामीणों और शिक्षकों का आरोप है कि भवन की मरम्मत या नए भवन के लिए वर्षों से निवेदन किए जा रहे हैं.. मगर न तो कांग्रेस सरकार के समय, न ही अब भाजपा सरकार में कोई ठोस कदम उठाया गया.. यहां तक कि पूर्व विधायक और मौजूदा सांसद चिंतामणि महराज ने भी इस स्कूल से जुड़ी घोषणा की थी, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही रहे..
जिला शिक्षा अधिकारी की सफाई
जब इस मसले पर ज़िला शिक्षा अधिकारी से सवाल किया गया, तो उन्होंने कलेक्टर से चर्चा कर संधारण कराने की बात कही.. लेकिन शिक्षकों और ग्रामीणों का कहना है कि यह सिर्फ आश्वासन है, ज़मीनी स्तर पर कोई पहल नहीं हुई..
विकसित भारत का नारा कहां?
“विकसित भारत, विकसित प्रदेश” का नारा देने वाली सरकारें क्या यह देख नहीं रही कि यहां बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ाई कर रहे हैं? क्या 43 साल पुराने भवन की मरम्मत के लिए किसी बड़े हादसे का इंतजार है?
जहां एक और स्कूल जतन योजना के तहत करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है ताकि शिक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जा सके वहीं दूसरी जिले की शिक्षा अधिकारी इस स्कूल की ओर मुंह फेर के खड़े हैं.. जब की ऐसे पुराने भवन जो खंडहर हो चुके हैं उन्हें चिन्हित dismantle करना चाहिए करना लेकिन जिले डीईओ मस्त मौला बनकर सिर्फ अपनी नौकरी पका रहे हैं..
बचवार स्कूल की बदहाली सिर्फ एक इमारत का दर्द नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का आईना है जो शिक्षा की दुहाई तो देती है लेकिन हकीकत में उपेक्षा की दीवार खड़ी कर देती है.. अगर अब भी जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधि नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियां इस बदहाली की गवाही देगी—कि जिस स्कूल ने अफसर और नेता बनाए, उसे बचाने कोई आगे नहीं आया..