संजय गुप्ता/बलरामपुर@ जिले के धनेशपुर गांव की वो काली रात आज भी हर किसी की आंखों में तैर रही है.. जब अचानक टूटे बांध की भीषण लहरें पूरे गांव को अपने आगोश में ले गईं.. देखते ही देखते घर-आंगन, खेत-खलिहान और सपनों से भरा एक परिवार जल सैलाब की भेंट चढ़ गया..
शुक्रवार का दिन गांव के लिए सबसे भारी साबित हुआ, मिट्टी और आग, दोनों ने मिलकर पांच जिंदगियों को विदाई दी.. कहीं से अर्थी उठ रही थी तो कहीं से दफन की तैयारी.. दो गर्भवती माताओं का अधूरा मातृत्व, उनकी गोद के मासूम बच्चों की नन्हीं-नन्हीं लाशें और साथ ही सास का जाना– यह सब देखकर गांव का हर दिल फट पड़ा..

लोग कह रहे थे – “किस्मत ने कितना बेरहम खेल खेला है… जिन बच्चों ने अभी जीवन का स्वाद भी नहीं चखा था, वे भी इस सैलाब में समा गए।”
एक महिला की कोख में पल रहा वह शिशु, जिसे जन्म लेने में अभी कुछ ही दिन बाकी थे, मां के साथ ही इस दुनिया से चला गया.. यह दृश्य इतना दर्दनाक था कि गांव के सबसे कठोर दिल वाले भी अपने आंसू रोक न पाए..
चार सदस्यों को दफनाया गया और एक का अग्नि संस्कार किया गया.. पूरे गांव की आंखें नम थीं, हर जुबान पर बस यही सवाल था कि आखिर इस परिवार ने किस गुनाह की सजा पाई?
अब भी परिवार के दो सदस्य लापता हैं.. खोज जारी है, लेकिन उम्मीदें हर लहर के साथ डगमगाती जा रही हैं.. गांव वाले कहते हैं, “बांध टूटा है, लेकिन सबसे ज्यादा टूटा है गांव का मन और भरोसा।”
आज धनेशपुर में सिर्फ पांच शव नहीं, बल्कि सपनों, रिश्तों और उम्मीदों की चिताएं जलीं..