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प्लास्टिक की छत के नीचे सपनों का आसमान.. जर्जर छात्रावास में कैद हैं 50 मासूमों की उम्मीदें..!! – जोकापाठ छात्रावास

On: Thursday, August 21, 2025 9:13 AM
jokapath
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संजय गुप्ता/बलरामपुर_शंकरगढ़@ जिस उम्र में बच्चों को किताबों की खुशबू और सुरक्षित वातावरण मिलना चाहिए, उस उम्र में शंकरगढ़ के जोकापाठ छात्रावास के 50 मासूम हर दिन जर्जर दीवारों और टपकती छत के बीच अपना बचपन गुजार रहे हैं.. दरअसल ये बच्चे आदिवासी अंचल के वे नन्हे सपने हैं, जिनके बेहतर भविष्य के लिए यह छात्रावास बनाया गया था.. लेकिन आज यह भवन किसी खंडहर से कम नहीं, और बच्चों की जिंदगी हर पल खतरे में है।

जोकापाठ छात्रावास

प्लास्टिक की छत, टपकती बूंदें और भीगते सपने

बारिश के दिनों में जब शहरों में बच्चे रंग-बिरंगे रेनकोट और छतरियों के साथ स्कूल जाते हैं, तब यहां के बच्चे प्लास्टिक की चादर से ढके छत के नीचे भीगते हुए पढ़ाई करते हैं.. अधीक्षक खुद मानते हैं कि बरसात में पूरा भवन टपकता है। रात को बच्चे पलंग पर नहीं, बल्कि डर पर सोते हैं– कहीं ऊपर से प्लास्टर न गिरे, कहीं दीवार न ढह जाए ?

जोकापाठ छात्रावास में 30 बिस्तरों पर 50 जिंदगियां

छात्रावास में सिर्फ 30 बिस्तर हैं, लेकिन रहने वाले बच्चे 50, मजबूरी यह है कि दो-दो बच्चे एक ही बिस्तर पर सिमटकर सोने को विवश हैं.. उनकी छोटी-छोटी आंखों में बड़े सपने हैं, लेकिन हालात इतने संकरे कि सपनों को पंख लगना ही मुश्किल है..

प्रशासन की आंखों पर पट्टी

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि आज तक कोई जिला अधिकारी यहां तक नहीं पहुंचा.. अधीक्षक को तक अपने जिला अधिकारी का नाम याद नहीं.. यह स्थिति बताती है कि जिम्मेदार लोग कभी इस छात्रावास की सुध लेने ही नहीं आए.. सवाल यह है कि मासूमों की जिंदगी से बड़ा कौन-सा काम है, जो प्रशासन को यहां तक खींच न सका?

मासूमों का भविष्य धुंधला

आदिवासी विभाग की योजनाओं के बावजूद हकीकत यही है कि आदिवासी अंचलों के बच्चों के लिए शिक्षा अब भी एक अधूरा सपना है.. प्लास्टिक की छत के नीचे पढ़ाई करना, भीगी किताबों से सीखना और सीलन भरी दीवारों के बीच सांस लेना-यही इन मासूमों का बचपन है..

ग्रामीणों की पुकार

स्थानीय लोग कहते हैं कि यह केवल एक भवन की समस्या नहीं, बल्कि भविष्य से खिलवाड़ है.. उनकी मांग है कि तुरंत नए भवन का निर्माण हो या मौजूदा भवन की मरम्मत कराई जाए, ताकि बच्चों की जान खतरे में न रहे..


जोकापाठ छात्रावास की तस्वीर सिर्फ एक भवन की नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की लापरवाही का आईना है..
यह सवाल हम सबके सामने खड़ा है-क्या इन बच्चों का बचपन सुरक्षित करने के लिए हमें किसी हादसे का इंतजार करना पड़ेगा ?


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