संजय गुप्ता/बलरामपुर@ बलरामपुर जिले के जरहा डीह आदिवासी छात्रावास में रविवार को एक हृदयविदारक हादसा हो गया.. लकड़ी काटते समय कुल्हाड़ी छिटककर चौथी कक्षा के छात्र अभय कच्छप के पैर में जा लगी.. गंभीर रूप से घायल छात्र को खून का बहाव नहीं रुकने से जिला अस्पताल बलरामपुर लाया गया जहां से उसे आश्रम अधीक्षक के द्वारा इलाज के लिए अंबिकापुर ले जा रहा था लेकिन बच्चे ने दम तोड़ दिया..
यह घटना वाकई दिल को झकझोर देने वाली है.. एक मासूम बच्चा, जिसकी उम्र खेल-कूद और पढ़ाई की थी, जिंदगी और मौत के बीच की रेखा पर आकर थम गया.. आदिवासी छात्रावास में रहने वाला चौथी कक्षा का छात्र अभय कच्छप, शायद यह सोच भी नहीं सकता था कि लकड़ी काटने का साधारण-सा दृश्य उसकी जिंदगी छीन लेगा.. कुल्हाड़ी का वह छिटकना किसी हथियार की तरह साबित हुआ जिसने पलभर में उसकी मासूम दुनिया उजाड़ दी..
इस हादसे में सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि बच्चा समय रहते बचाया नहीं जा सका.. अस्पताल ले जाते वक्त उसकी नन्हीं सांसें थम गईं.. यह केवल एक परिवार का नहीं, पूरे समाज का नुकसान है क्योंकि शिक्षा पाने का सपना लेकर छात्रावास में रह रहा वह बच्चा अब कभी अपनी मंज़िल तक नहीं पहुँच पाएगा..
यह सवाल भी छोड़ जाता है कि छात्रावास जैसे सुरक्षित माने जाने वाले स्थानों पर बच्चे कैसे ऐसे जोखिमों के शिकार हो जाते हैं.. चौकीदार का लापरवाह व्यवहार और प्रबंधन की उदासीनता आज एक मासूम की जान ले गई.. यह चूक केवल गलती नहीं, बल्कि एक गंभीर लापरवाही है..
अब ज़रूरत है कि इस घटना को केवल एक “हादसा” मानकर न टाल दिया जाए.. यह बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था पर गहरी चोट है.. प्रशासन को चाहिए कि ऐसी व्यवस्थाओं की तत्काल समीक्षा करे, ताकि कोई और अभय अपनी मासूम उम्र में जिंदगी न गंवाए..
अभय का न होना केवल उसके माता-पिता का दर्द नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है.. उसकी खोई हुई मुस्कान और अधूरा सपना हम सभी से सवाल करता है —क्या हम अपने बच्चों को सच में सुरक्षित भविष्य दे पा रहे हैं?
अब देखना यह होगा कि इस मासूम की मौत के बाद उनके माता-पिता इनकी घाव पर मरहम लगाने के लिए किस तरह से आर्थिक सहायता पहुंच पाती है ?